पल-पल सत्य प्रकट हो रहा
दुःख की काली चादर जैसे
रात कोई अंधियारी घोर,
राह नजर न आती जिसमें
नहीं क्षितिज का दिखता छोर !
कितने अश्रु छिपे हुए थे
बाहर आने को थे आतुर,
गूँज रहे थे अंतर्मन में
जाने कैसी पीड़ा के स्वर !
सुख बस एक छलावा निकला
दुःख ही जीवन का आधार,
खुशियाँ जग को नहीं सुहातीं
दुःख में खिलता है संसार !
आंसू देख देख मुस्काए
ऐसी रीत यहाँ चलती है,
ऊपर ऊपर ही मैत्री
अंतर में नफरत पलती है !
जीवन की यह उहापोह जो
मथ डाले मन का हर कोना,
पीड़ा में जो स्वयं तपता हो
वह है बस एक स्वप्न सलोना !
कोमल उर को छलनी करते
पीड़ा ही जग में बाँटें,
पल-पल सत्य प्रकट हो रहा
सदा फूल संग होते कांटें !
इतने बरसों बाद मिली है
पर जानी पहचानी सी है,
दुःख की छाया मिथ्या ही हो
पर न यह अनजानी सी है !
ग्रस डाला है आखिर इसने
राहु बन कर उजियारे को,
कब छूटेगी इससे काया
मुक्ति मिलेगी मन हारे को !
थोड़ा सा जो भीतर था मन
वह भी इसकी भेंट चढ़ेगा,
अब तक जिसको थामा उर ने
हर विचार वह बह निकलेगा !
आपकी लिखी रचना बुधवार 17 सितम्बर 2014 को लिंक की जाएगी...............
जवाब देंहटाएंhttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
बहुत भावपूर्ण रचना.
जवाब देंहटाएंग्रस डाला है आखिर इसने
जवाब देंहटाएंराहु बन कर उजियारे को,
कब छूटेगी इससे काया
मुक्ति मिलेगी मन हारे को !
...अंतस को छूते गहन अहसास...बहुत सुन्दर..
यशोदा जी,राजीव जी, रविकर जी व कैलाश जी आप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंसुंदर लेखन , अनीता जी धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
आपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 18 . 9 . 2014 दिन गुरुवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !
भावपूर्ण और बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुन्दर ..बधाई आप को
जवाब देंहटाएंBahut sunder prastuti...badhaayi va shubhkamnaayein aapko....
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