मंगलवार, सितंबर 16

पल-पल सत्य प्रकट हो रहा

पल-पल सत्य प्रकट हो रहा  



दुःख की काली चादर जैसे
रात कोई अंधियारी घोर,
राह नजर न आती जिसमें 
नहीं क्षितिज का दिखता छोर !

कितने अश्रु छिपे हुए थे
बाहर आने को थे आतुर,
गूँज रहे थे अंतर्मन में
जाने कैसी पीड़ा के स्वर !

सुख बस एक छलावा निकला
दुःख ही जीवन का आधार,
खुशियाँ जग को नहीं सुहातीं
दुःख में खिलता है संसार !

आंसू देख देख मुस्काए
ऐसी रीत यहाँ चलती है,
ऊपर ऊपर ही मैत्री
अंतर में नफरत पलती है !

जीवन की यह उहापोह जो
मथ डाले मन का हर कोना,
पीड़ा में जो स्वयं तपता हो
वह है बस एक स्वप्न सलोना !

कोमल उर को छलनी करते
पीड़ा ही जग में बाँटें,
पल-पल सत्य प्रकट हो रहा  
सदा फूल संग होते कांटें !

इतने बरसों बाद मिली है
पर जानी पहचानी सी है,
दुःख की छाया मिथ्या ही हो
पर न यह अनजानी सी है !

ग्रस डाला है आखिर इसने
 राहु बन कर उजियारे को,
कब छूटेगी इससे काया
मुक्ति मिलेगी मन हारे को !

थोड़ा सा जो भीतर था मन
वह भी इसकी भेंट चढ़ेगा,
अब तक जिसको थामा उर ने
हर विचार वह बह निकलेगा !




9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना बुधवार 17 सितम्बर 2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. ग्रस डाला है आखिर इसने
    राहु बन कर उजियारे को,
    कब छूटेगी इससे काया
    मुक्ति मिलेगी मन हारे को !
    ...अंतस को छूते गहन अहसास...बहुत सुन्दर..

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  3. यशोदा जी,राजीव जी, रविकर जी व कैलाश जी आप सभी का स्वागत व आभार !

    जवाब देंहटाएं
  4. सुंदर लेखन , अनीता जी धन्यवाद !
    Information and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
    आपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 18 . 9 . 2014 दिन गुरुवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !

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