गुरुवार, जनवरी 29

बन बसंत जो साथ सदा हो

बन बसंत जो साथ सदा हो



किसकी राह तके जाता मन
खोल द्वार दरवाजे बैठा
किसकी आस किये जाता मन !

एक पाहुना आया था कल
एक हँसी भीतर जागी थी,
हुई लुप्त फिर घट सूना है
फिर से इक मन्नत माँगी थी !

किसकी बाट जोहता हर पल 
किसकी याद संजोये बैठा
किसकी चाह किये जाता मन !

मिला बहुत पर नहीं वह मिला
बन बसंत जो साथ सदा हो,
स्वप्न नहीं बहलाते, ढूढें  
तृप्ति का जो मधुर राग हो !

किसको यह आवाज लगाये
किसकी आहट को तरसे
किसकी प्यास भरे जाता मन !




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