बन बसंत जो साथ सदा हो
किसकी राह तके जाता मन
खोल द्वार दरवाजे बैठा
किसकी आस किये जाता मन !
एक पाहुना आया था कल
एक हँसी भीतर जागी थी,
हुई लुप्त फिर घट सूना है
फिर से इक मन्नत माँगी थी !
किसकी बाट जोहता हर पल
किसकी याद संजोये बैठा
किसकी चाह किये जाता मन !
मिला बहुत पर नहीं वह मिला
बन बसंत जो साथ सदा हो,
स्वप्न नहीं बहलाते, ढूढें
तृप्ति का जो मधुर राग हो !
किसको यह आवाज लगाये
किसकी आहट को तरसे
किसकी प्यास भरे जाता मन !
बहुत सुन्दर .
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : तिब्बती साहित्य की रहस्यमयी लेखिकाएं
अति सुन्दर !
जवाब देंहटाएंआस - विश्वास कायम रहे, उस वसंत को आना ही होगा जो सदा साथ हो। .... बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंवाह ……क्या भाव संजोये हैं। शानदार्।
जवाब देंहटाएंराजीव जी, आदित्य जी, संध्या जी व संजय जी, स्वागत व आभार !
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