नई दुनिया में 
नहीं, उसका मिलना ऐसा नहीं था 
जैसे कोई बिछड़ा मीत मिल जाये 
उसने तो छुड़ा दिए थे सारे नाते और 
फिर से मिला दिया था सबसे किसी और तल पर 
दुनिया भी अब पहले वाली नहीं रही थी न ही वह खुद ! 
सारे समीकरण ही बदल गये थे इस नई दुनिया में 
यहाँ पाने का अर्थ देना होता था   
व्यर्थ को त्याग सार को लेना होना होता था 
नहीं, उसका होना ऐसा नहीं था 
जैसे कोई दिखाए अपनी जायदाद को 
उसने तो छीन लिए थे 
आत्मा के वस्त्र तक 
और फिर से दिला दी थी चाँद-तारों की वसीयत 
अस्तित्त्व भी पहले की तरह नहीं रहा था मौन 
न ही उसके कान बहरे !

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