शनिवार, मार्च 14

कौन भर रहा प्रीत प्राण में

कौन भर रहा प्रीत प्राण में


कौन सिखाए उड़ना खग को
नीड़ बनाना व इतराना,
तिरना हौले-हौले नभ में
दूर देश से वापस आना !

कौन भर रहा प्रीत प्राण में
शावक जो पाता हिरणी से,
कौन खड़ा करता वृक्षों को
पोषण पायें वे धरणी से !

सागर से जाकर मिलना है
नदियों को यह चाहत देता,
प्यास जगाता पहले उर में
जल शीतल बन राहत देता !

जाने कब से चला आ रहा
सृष्टि चक्र यह अनुपम अविरत,
रस की ये बौछारें रिमझिम
टपक रही जो आभा प्रमुदित !  

10 टिप्‍पणियां:

  1. सबमे उसकी छाया, कण-कण में वही समाया
    बहुत सुन्दर रचना ....

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  2. कल 15 /मार्च/2015 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  3. अति सुंदर। सृष्टिचक्र सचमुच अनुपम है।

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  4. ओंकार जी, संध्या जी यशवंत जी और अनुराग जी, स्वागत व आभार !

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  5. सृष्टि की नुपम माया ... प्रभू की अनुकम्पा को बाखूबी लिखा है ... शब्दों में ... अति सुन्दर ...

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  6. सत् और चित् के साथ प्रकृति प्रदत्त आनन्द का समावेश जीवन को पूर्णता देता है -जीव मात्र के लिए यही संदेश है ,मनुष्य ही है जो प्रायः भटक जाता है .

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  7. अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको .

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  8. दिगम्बर जी, प्रतिभा जी व मदन जी, स्वागत व आभार !

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