एक अनंत गगन है भीतर
नाच उठे जो कैद है भीतर
खेल चल रहा कोई सुंदर,
एक ऊर्जा गाती प्रतिपल
एक ऊर्जा सुनती हर स्वर !
जीवन एक सुहृद मित्र सा
प्रतिक्षण ऊंचा ही ले जाता,
एक अनंत गगन है भीतर
फिर क्यों घर का आंगन भाता !
तोड़ के सारे झूठे बंधन
अभय प्राप्त यदि कर लेगा मन,
नई नई राहें खोजेगा
सहज उड़ान भरेगा चेतन !
मन की क्षमता असीम है. जब यह मोह माया बंधनों से मुक्त हो जाता है तो स्वयं तीव्र हो जाती है गति अनंत यात्रा में...बहुत सुन्दर और प्रभावी रचना..
जवाब देंहटाएंसुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ।
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंअनंत गगन है मुक्त उड़ान के लिये ,पग रख कर थिर रहने का आधार है घर .
जवाब देंहटाएंकैलाश जी, संजू जी, ओंकार जी व प्रतिभा जी आप सभी का स्वागत व आभार !
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