बुधवार, मई 20

गाँठ सभी खोल लो


गाँठ सभी खोल लो
  

एक वर्ष और बीता
गठरी न बांधो और
जाने कब चलना हो
अंतिम हो कौन भोर ?

हल्का ही मन रहे
सफर जाने कैसा हो,
गाँठ सभी खोल लो
कौड़ी न पैसा हो !

एक ही लगन रहे
जाना है उसी देश,
कोई जहाँ तके राह
भटके बहुत परदेश !

5 टिप्‍पणियां:

  1. यात्र में बोझ ले कर न चलें वही अच्छा -और फिर ये तो राह ही अनजानी है .

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  2. आपकी इस पोस्ट को शनिवार, २३ मई, २०१५ की बुलेटिन - "दी रिटर्न ऑफ़ ब्लॉग बुलेटिन" में स्थान दिया गया है। कृपया बुलेटिन पर पधार कर अपनी टिप्पणी प्रदान करें। सादर....आभार और धन्यवाद।

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  3. प्रतिभा जी, मधुलिका जी व तुषार जी, स्वागत व आभार !

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