देखो पल में कहाँ खो गया
बड़ी-बड़ी
बातें करता था
पा
के रहेंगे दम भरता था
था
कितना दीवाना सा दिल
मुट्ठी
में रेत भरता था !
बात-बात
पर रूठा करता
घड़ी-घड़ी
जो टूटा करता
था
कितना अनजाना सा दिल
अपना
दामन आप धो गया !
अपना
कद ऊंचा करने की
ज्ञान
निधि भीतर भरने की
तिकडम
सदा लगाता जो दिल
स्वयं
ही तो शून्य हो गया !
इसे
बता दे उसे जता दे
इसे
सिखा दे उसे धता दे
इसी जोड़तोड़ में रहता
दिल
बेचारा धूल हो गया !
मिटकर
ही चैन पाया है
लौट
के अपने घर आया है
एक
बबूला ही तो था दिल
पल
भर में ही हवा हो गया !
कितने
ही दावे कर डाले
महल
हवा में ही गढ़ डाले
पानी
में दीवारें चुनता
अन्तरिक्ष
में कहीं खो गया !
दिल का इससे सुंदर वर्णन नहीं हो सकता....
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 15 - 10 - 2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2130 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत बहुत आभार !
हटाएंबहुत ही सुंदर वर्णन किया है आपने। चित्र भी अच्छा लगाया। मेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंयही तो एक शाश्वत सत्य है जिससे हम जानकर भी अनजान बने रहते हैं...बहुत सटीक और सारगर्भित प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंअनजान बने रहकर ही दुःख के भागी होते हैं..आभार !
हटाएंबहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंदिल और मन पर्यायवाची ही तो हैं.
जवाब देंहटाएंसही कहा है आपने प्रतिभा जी..
हटाएंदिल कहो या मन उसकी गति ही न्यारी है .
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
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