हम और वह
हम
नहीं होते जब वह होता है
बंद
हो जाती है आँख जब वह
अपने आप में समोता है
हमारा
होना ही उसका न होना है
उसका
होना ही हमारा खोना है
उतार
सारे मुखौटे
जब
जाते हैं हम उसके करीब
हम
में कुछ बचता ही नहीं
बस
रह जाता है वह रकीब
हर
चाहत एक चेहरा है
हर
लक्ष्य सबब बनता
उससे
दूर ले जाने का
हर
ख्वाहिश उसे खोने का
वह
जो हर कहीं है.. हमारे होने से ही तो है ढका !
नमस्कार अनीता जी!
जवाब देंहटाएंआपको जानकर खुशी होगी कि आप जैसे लोगो के कार्य को अब एक स्थान मिल गया
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धन्यवाद.
उतार सारे मुखौटे
जवाब देंहटाएंजब जाते हैं हम उसके करीब
हम में कुछ बचता ही नहीं
बस रह जाता है वह रकीब.
कितना सच है. सुंदर प्रस्तुति.
बेहद खूबसूरत रचना....
जवाब देंहटाएंआप को दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनाएं...
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सुन्दर रचना ......
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उतार सारे मुखौटे
जवाब देंहटाएंजब जाते हैं हम उसके करीब
हम में कुछ बचता ही नहीं
बस रह जाता है वह रकीब.
खूबसूरत रचना.
आप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंहर चाहत एक चेहरा है
जवाब देंहटाएंहर लक्ष्य सबब बनता
उससे दूर ले जाने का
हर ख्वाहिश उसे खोने का
....बिलकुल सच कहा है...बहुत गहन और सुन्दर प्रस्तुति...
बहुत सुन्दर
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