राहों में जो फूल मिलेंगे
मंजिल
कितनी दूर भले हो
कदमों
को न थकने देना,
राहों
में जो फूल मिलेंगे
उर
सुरभि से भरने देना !
पत्थर
भी साथी बन सकते
चलना
जिसको आ जाता है,
भूलों
से ही उपजी पीड़ा
दुःख
भी पाठ पढ़ा जाता है !
अंतर
में जब प्रीत जगी हो
उपवन
बन जाता संसार,
नहीं
विरोध किसी से रहता
सहज
बिखरता जाता प्यार !
श्रम
के कितने सीकर बहते
नित
नूतन यहाँ सृजन घटे,
साध
न पूरी होगी जब तक
तिल
भर भी न तमस घटे !
उर
आंगन में रचें स्वर्ग जब
उसका
ही प्रतिफलन हो बाहर,
भीतर
घटे पूर्णिमा पहले
चाँद
उगेगा नीले अम्बर !
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 18 दिसम्बर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार यशोदाजी !
हटाएंपत्थर भी साथी बन सकते
जवाब देंहटाएंचलना जिसको आ जाता है,
भूलों से ही उपजी पीड़ा
दुःख भी पाठ पढ़ा जाता है !
... बहुत सुन्दर....
स्वागत व आभार कविता जी
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