सृष्टि भरपूर है
आज
जो पंक है वही कल कमल बनेगा
अश्रु
जो झरता है.. मन अमल बनेगा
अभी
जो खलिश है भीतर वही कल स्वर्ग रचेगी
आज
के जागरण से.. कल गहन समाधि घटेगी
सृष्टि
भरपूर है प्रतिपल लुटाती है
जिसकी
आज चाह उपजी कल उसे भर जाती है
बेमानी
है अभाव की बात
यहाँ
बरसता है पल-पल अस्तित्त्व
बस
खाली कर दामन पुकारना है एक बार
रख
देना मन को बना सु-मन उसके द्वार
माना
कि शंका के दस्यु हैं, दानव भी भय के
पर
विजय का स्वाद.. नहीं चखेंगे वे
निकट
ही है उषा ज्ञान सूर्य उदित होगा
नजर
नहीं आयेंगे तब भय और शंका
मुस्कुराएगी
सारी कायनात संग में
आँखों
में अश्रु भरे हर्ष और उल्लास के !
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