होना भर यदि क़ुबूल हो
दुःख
के कांटे यदि नहीं चाहिये
तो सुख के फूल कैसे खिलेंगे
पतवार
खेने का श्रम उठाया नहीं
तो
पार भला कैसे उतरेंगे
कुछ
पाना है तो कुछ खोना पड़ेगा ही
हँसना
है तो रोना भी पड़ेगा ही
देह
के हर सुख के साथ जुड़ा है दुःख का टैग
बस
परम सुख मिलता है किसी भी दुःख के बगैर
वहाँ
सिर्फ होना भर है
वहाँ
न कोई डर है
एक
रस वहाँ सुख बरसता है
मन
उसी सुख के लिए तो तरसता है
पर
नहीं लौटता अपने घर
जग
के ही लगाता रहता है चक्कर..
जीवन
यही एक अनोखा खेल है
अद्भुत
इस जग की रेलमपेल है !
वहाँ न कोई डर है
जवाब देंहटाएंएक रस वहाँ सुख बरसता है
मन उसी सुख के लिए तो तरसता है
- सच में होती है कोई ऐसी जगह?और होती भी हो तो हमारा वहाँ होना अपने बोधों के साथ या साक्षी मात्र क्या पता .
स्वागत व आभार प्रतिभाजी ! साक्षी मात्र में ही तो सारा राज छुपा है..परमात्मा भी तो मात्र साक्षी है इस सृष्टि का..
जवाब देंहटाएंअद्भुत !!!
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