मौन
सिमट गयी है कविता
या छोड़ दिया है खजाना शब्दों का
उस तट पर
मंझदार ही मंझदार है अब
दूसरा तट कहीं नजर नहीं आता
एक अंतहीन फैलाव है और सन्नाटा
किन्तु डूबना होगा सागर की अतल गहराई में
शैवालों के पार....
जहाँ ढलना है ऊर्जा को सौंदर्य और भावना में
जीवन की सौगात को यूँ ही नहीं लुटाना है
कवि के हाथों में जब तक कलम है
और दिल में शुभकामना है उसे
वक्त के हर अभिशाप को वरदान में ढालना है !
Sach hai ... kavi ko apni takat ko pahchaanna hai ...
जवाब देंहटाएंस्वागत व बहुत बहुत आभार !
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