रंग भर रहा कोई पल-पल
कोकिल कहाँ सोचती होगी किस सुर में गाना है
पंचम सुर में सहज कंठ से बहता मधुर तराना है
नदिया कब किस ओर बहेगी नक्शे कहाँ बनाये
जाने किसने खन्दक खाई पथ अनुकूल दिखाए
मर-मर न करे प्रतीक्षा भू में बीज सहज ही सोया
ऋतू आने पर आंखें खोले जाने कब था बोया
कोरा कागज सा जीवन है रंग भर रहा कोई पल-पल
प्रश्न उतरते आहिस्ता से जाने कौन किये जाता हल
जीवन जब अविरत बढ़ता है नदिया की धारा सा
छुपी हुई निधियां उर में जो बन सुगंध बिखरा जाता
सबके जीवन में रंग भरे यही हमारी कामना है...... बहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार संध्या जी..
हटाएंसुन्दर शब्द रचना
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की मंगलकामनाएं
http://savanxxx.blogspot.in
आपको भी नये वर्ष के लिए मंगल कामनाएं..
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