शब्द और अर्थ
कहते-सुनते, लिखते-पढ़ते
बीत गये युग-युग, फिर भी
नये-नये ही अर्थ दे रहे
शब्द रहे नित नूतन ही !
प्रेम जिसे कहते थे पहले
माने उसके बदल गये अब,
भक्ति नहीं अब मने मनौती
मंदिर में व्यापार चले जब !
कुनबा कहते ही आँखों में
दादी, नानी लगें झलकने,
किस नाम से इसे पुकारें
दो जन रहते दो कमरों में !
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