बँटना ही जीवन है
सूर्य बाँटता है अपनी ऊर्जा
सृष्टि के हर कण से
पुहुप सांझा करता है
मधु और गंध
हवा प्रवेश करती आयी है अनंत नासापुटों में
अनंत काल से !
अस्तित्त्व लुटा रहा है बेशर्त पल-पल
जितना देता है वह
उतना ही भरता जाता है
न जाने किस अदृश्य कोष से !
लुटाती है माँ अपने अंतर का प्रेम
पोषित होगी शिशु की आत्मा
देह भी उष्ण है मन की ऊष्मा से !
शुचिता है वहाँ जहाँ बहाव है
अटका हुआ मन ही उलझाव है
रोक ली गयी ऊर्जा ही
मन का भटकाव है
अनवरत झरती ऊर्जा ही
भक्ति का भाव है !
शुचिता है वहाँ जहाँ बहाव है
जवाब देंहटाएंअटका हुआ मन ही उलझाव है
...बिलकुल सत्य...बहाव ही जीवन है...बहुत सुन्दर और सार्थक चिंतन...
बहुत ही उम्दा
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार मानव जी !
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 02-03-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2600 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत बहुत आभार दिलबाग जी !
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन हास्य लेखक तारक मेहता का निधन और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी !
हटाएंद से देना, द से देवत्व ...
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही..देने का भाव ही देवत्व है, देवता का हाथ सदा आशीष देता है और आत्मा का स्वभाव भी देने का ही है..आभार !
हटाएंस्वागत व आभार सावन जी..
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