मिट जाने को जो तत्पर है
मरना जिसने सीख लिया है
उसको ही है हक जीने का,
साँझ ढले जो मुरझाये, दे
प्रातः उसे अवसर खिलने का !
मिट जाने को जो तत्पर है
वही बना रहता इस जग में,
ठोकर से जो न घबराए
बना रहेगा जीवन मग में !
सच की पूजा करने वाले
नहीं झूठ से बच सकते हैं,
जो सुन्दरता को ही चाहें
वही कुरूपता लख सकते हैं !
बोल-अबोल, मित्र-शत्रु भी
है पहलू इक ही सिक्के का,
सदा डोलता रहता मानव
बना हुआ एक दोलक सा !
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंसत्य वचन....
स्वागत व आभार ओंकार जी व सुधा जी !
जवाब देंहटाएं