बूँद यहाँ हर नयना ढलकी
जाने क्या पाने की धुन है
हर दिल में बजती रुनझुन है,
किस आशा में दौड़ लगाते
क्षण भर की ही यह गुनगुन है
!
दिवस-रात हम स्वप्न देखते
इक उधेड़बुन जगते-सोते,
चैन के दो पल भी न ढूँढे
जीवन बीता हँसते-रोते !
जाने कितनी बार मिला है
फूल यही हर बार खिला है,
स्रोत खोज लें इस सौरभ का
क्यों आखिर मन करे गिला है !
करुणा भरी कहानी सबकी
एक वेदना ही ज्यों छलकी,
सुख भी मिलता साथ दुखों के
बूँद यहाँ हर नयना ढलकी !
खुला रहस्य, राज इक गहरा
रब पर लगा न कोई पहरा,
खुली आँख भी वह दिखता है
मिलने उससे जो भी ठहरा !
बहुत अच्छी कविता ....
जवाब देंहटाएंmere blog ki new post par aapke vicharo ka swagat...
Happy Father's Day!
स्वागत व आभार संजू जी !
हटाएंबहुत सुंदर रचना अनिता जी👌
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार स्वेता जी !
हटाएंकरुणा भरी कहानी सबकी
जवाब देंहटाएंएक वेदना ही ज्यों छलकी,
सुख भी मिलता साथ दुखों के
बूँद यहाँ हर नयना ढलकी !
बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ ,कोमल विचार ,हृदय को स्पर्श करती आभार। "एकलव्य "
स्वागत व आभार ध्रुव जी !
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