रविवार, जून 18

बूँद यहाँ हर नयना ढलकी


बूँद यहाँ हर नयना ढलकी


जाने क्या पाने की धुन है
हर दिल में बजती रुनझुन है,
किस आशा में दौड़ लगाते
क्षण भर की ही यह गुनगुन है !

दिवस-रात हम स्वप्न देखते
इक उधेड़बुन जगते-सोते,
चैन के दो पल भी न ढूँढे
जीवन बीता हँसते-रोते !

जाने कितनी बार मिला है
फूल यही हर बार खिला है,
स्रोत खोज लें इस सौरभ का
क्यों आखिर मन करे गिला है !

करुणा भरी कहानी सबकी
एक वेदना ही ज्यों छलकी,
सुख भी मिलता साथ दुखों के
बूँद यहाँ हर नयना ढलकी !  

खुला रहस्य, राज इक गहरा
रब पर लगा न कोई पहरा,
खुली आँख भी वह दिखता है
मिलने उससे जो भी ठहरा !

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी कविता ....
    mere blog ki new post par aapke vicharo ka swagat...
    Happy Father's Day!

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  2. बहुत सुंदर रचना अनिता जी👌

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  3. करुणा भरी कहानी सबकी
    एक वेदना ही ज्यों छलकी,
    सुख भी मिलता साथ दुखों के
    बूँद यहाँ हर नयना ढलकी !

    बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ ,कोमल विचार ,हृदय को स्पर्श करती आभार। "एकलव्य "

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