खो जाता अनंत आकाश
ख्वाब मंजिलों के
अंतर में
पाहन बाँध पगों में चलते,
नील गगन में उड़ना
चाहें
बँधी बेड़ियाँ खोल
न पाते !
नजरें सदा
क्षुद्र पर रहतीं
खो जाता अनंत
आकाश,
घोर अँधेरे बसे
हृदय में
ढूँढ़ रहा मन
प्रखर प्रकाश !
सदा बँधी तट पर
लंगर से
बरसों बरस नाव को
खेते,
सुदूर कहीं
प्रयाण न होता
गीत सदा उस तट के
गाते !
छोटे-छोटे सुख की
खातिर
कभी परम का दरस न
होता,
जिसके कारण ही
जीवन है
कण भर उसका परस न
होता !
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