थामता है हर घड़ी वह
बूँद बनकर जो
मिला था
सिंधु सा वह बढ़ा
आता,
रोशनी की इक किरण
था
बन उजाला पथ
दिखाता !
थामता है हर घड़ी
वह
जो बरसता प्रीत
बनकर,
खोल देता द्वार
दिल के
फिर सरसता गीत
बनकर !
हर नुकीली राह को
भी
मृदु गोलाई में
बदले,
कंटकों से जो भरी
थी
मधु अमराई में
बदले !
बस गया है आज दिल
में
डाल डेरा और डंडा,
दूर से जो था
पुकारे
मिल गया उसका
ठिकाना !
सतत ईश्वर की ओर ले जाती मन की निर्मल अभिव्यक्ति !! अद्वितीय काव्य !!
जवाब देंहटाएंठिकाना मिल जाये तो फिर क्या चाहिए भक्ति भाव से परिपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार संगीता जी !
हटाएंथामता है हर घड़ी वह
जवाब देंहटाएंजो बरसता प्रीत बनकर,
खोल देता द्वार दिल के
फिर सरसता गीत बनकर !
उम्दा ! सुन्दर अभिव्यक्ति ,कोमल भावनायें आदरणीय अनीता जी आपकी रचना हृदय तक झंकार करती है आभार। "एकलव्य"
स्वागत व आभार ध्रुव जी !
हटाएंसुंदर रचना......बधाई|
जवाब देंहटाएंआप सभी का स्वागत है मेरे ब्लॉग "हिंदी कविता मंच" की नई रचना #वक्त पर, आपकी प्रतिक्रिया जरुर दे|
http://hindikavitamanch.blogspot.in/2017/07/time.html