बुधवार, जुलाई 5

थामता है हर घड़ी वह


थामता है हर घड़ी वह

बूँद बनकर जो मिला था
सिंधु सा वह बढ़ा आता,
रोशनी की इक किरण था
बन उजाला पथ दिखाता !

थामता है हर घड़ी वह
जो बरसता प्रीत बनकर,
खोल देता द्वार दिल के
फिर सरसता गीत बनकर !

हर नुकीली राह को भी
मृदु गोलाई में बदले,
कंटकों से जो भरी थी
मधु अमराई में बदले !

बस गया है आज दिल में
डाल डेरा और डंडा,
दूर से जो था पुकारे
मिल गया उसका ठिकाना !


6 टिप्‍पणियां:

  1. सतत ईश्वर की ओर ले जाती मन की निर्मल अभिव्यक्ति !! अद्वितीय काव्य !!

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  2. ठिकाना मिल जाये तो फिर क्या चाहिए भक्ति भाव से परिपूर्ण रचना

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  3. थामता है हर घड़ी वह
    जो बरसता प्रीत बनकर,
    खोल देता द्वार दिल के
    फिर सरसता गीत बनकर !
    उम्दा ! सुन्दर अभिव्यक्ति ,कोमल भावनायें आदरणीय अनीता जी आपकी रचना हृदय तक झंकार करती है आभार। "एकलव्य"


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  4. ​​सुंद​​र रचना......बधाई|​​

    आप सभी का स्वागत है मेरे ब्लॉग "हिंदी कविता मंच" की नई रचना #वक्त पर, आपकी प्रतिक्रिया जरुर दे|

    http://hindikavitamanch.blogspot.in/2017/07/time.html

    ​​

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