गीत उपजते अधरों से यूँ
रंग बिखेरे जाने
किसने
उपवन सारा महक
रहा है,
लाल, गुलाबी, नीले, पीले
कुसुमों से दिल
बहक रहा है !
एक सुवास नशीली
छायी
मस्त हुआ है आलम
सारा,
रँगी हुई है सारी
धरती
होली का है अजब
नजारा !
फगुनाई भर पवन बह
रही
उड़ा रही है पराग
गुलाल,
सेमल झूमी,
महुआ टपका
फूले कंचन,
कनेर, पलाश !
कण-कण वसुधा का
हर्षित है
किसने आखिर किया
इशारा,
मधुमास में चहकते
पंछी
जाने किसने
उन्हें पुकारा !
रस टपके मुदिता
भी बरसे
कुदरत सारी नई
हुई है,
गीत उपजते अधरों
से यूँ
जैसे वर्षा बूंद
झरी है !
मौसम का ही असर
हुआ है
मन मयूर दिनरात
नाचता,
बासंती यह पवन
सुहाना
अंतर्मन में
प्यास जगाता !
होली रंग बहाती
सुखमय
तन के संग-संग मन
भीगे,
सारे जग को मीत
बना लें
पिचकारी से प्रीत
ही बहे !