कृष्ण जन्म
यह तन कारागार है
अहंकार है कंस
पञ्च इन्द्रियाँ
संतरी भीतर बंदी हंस !
बुद्धि हमारी
देवकी मन-अंतर वसुदेव
इन दोनों का मिलन
बना आनंद का गेह !
प्रहरी सब सो गए
इन्द्रियाँ हुईं उपराम
हृदय बुद्धि में
खो गया भीतर प्रकटे श्याम !
अविरति है
कालिंदी पार है गोकुल धाम
मिटा मन का राग
तो खुद आया घनश्याम !
बहुत सुन्दर आध्यात्मिक चिंतन भरी रचना
जवाब देंहटाएंजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं
स्वागत व आभार कविता जी !
हटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी !
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