चरैवेति चरैवेति
जीवन को नयनों भर
तकते ही रहना मन !
मार्ग यदि मिल
गया हो
तो चलते ही रहना,
न थकना न ही
रुकना
बस बढ़ते ही रहना !
नत माथ हो छाँव में
पल भर ही सुस्ता
कर,
गढ़ते ही रहना कल
कदमों में आशा भर
!
सपनों सी फुलवारी
मंजिल की झलक
दिखे,
पलने ही देना मन
नयनों में चमक
जगे !
लौटेंगे किसी दिन
स्वेद बिंदु,
मोती बन,
राह में गिरे थे
जो
माटी में गये सन
!
सबसे अलग सा ही लिखती हैं आप...अद्भुत
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसादर नमस्कार !
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "साप्ताहिक मुखरित मौन में" शनिवार 6 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "साप्ताहिक मुखरित मौन" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बहुत आभार !
हटाएंबहुत प्रेरक और सारगर्भित प्रस्तुति। चलते रहना ही जीवन है...
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सृजन आदरणीया
जवाब देंहटाएंसादर