मंगलवार, जुलाई 2

चरैवेति चरैवेति



चरैवेति चरैवेति

जीवन को नयनों भर
तकते ही रहना मन !

मार्ग यदि मिल गया हो
तो चलते ही रहना, 
न थकना न ही रुकना
बस बढ़ते ही रहना !

नत माथ हो छाँव में
पल भर ही सुस्ता कर,
गढ़ते ही रहना कल
कदमों में आशा भर !

सपनों सी फुलवारी
मंजिल की झलक दिखे,
पलने ही देना मन
नयनों में चमक जगे !

लौटेंगे किसी दिन
स्वेद बिंदु, मोती बन,
राह में गिरे थे जो
माटी में गये सन !

8 टिप्‍पणियां:

  1. सबसे अलग सा ही लिखती हैं आप...अद्भुत

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  2. सादर नमस्कार !
    आपकी लिखी रचना "साप्ताहिक मुखरित मौन में" शनिवार 6 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "साप्ताहिक मुखरित मौन" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. बहुत प्रेरक और सारगर्भित प्रस्तुति। चलते रहना ही जीवन है...

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  4. बहुत ही सुन्दर सृजन आदरणीया
    सादर

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