समाधि का फूल
“जब गिर जाएगी झूठ की आखिरी दीवार भी भीतर
सुडौल हो जायेगा भावनाओं का नुकीला पत्थर घिसते-घिसते
जो चुभ जाता था खुद को और चुभाया जाता था दूसरों को
जब तृप्त हो जाएगी मन की आखिरी वासना भी
जीने की, यश और साहचर्य की
“जब गिर जाएगी झूठ की आखिरी दीवार भी भीतर
सुडौल हो जायेगा भावनाओं का नुकीला पत्थर घिसते-घिसते
जो चुभ जाता था खुद को और चुभाया जाता था दूसरों को
जब तृप्त हो जाएगी मन की आखिरी वासना भी
जीने की, यश और साहचर्य की
जब उत्तेजना के साधन नहीं जुटाने होंगे
मन के शावक को
तृप्त होगा वह उस कोमल शिशु की भांति
जो जल की अनंत राशि पर लेटा तिरता है
जब ऐसा होगा तो समाधि का फूल खिलेगा”
कहा गुरू ने
पूछा शिष्य ने, “जब तक खिले न समाधि का फूल, कोई ऐसा कैसे हो सकता है ?
देख पायेगा वही भीतर असत्य का धुआं
जो जाग गया है
आत्मकामी होना बिना असीम सुख को पाए सम्भव ही नहीं “
गुरू ने एक फूल दिया शिष्य को
और पूछा,
“यह पहले खिला या सहे इसने बीज से फूल होने की यात्रा के दंश
मिटाया अपने अस्तित्व को
सही धूप और बारिश की मार
वह बीज तुम हो !
समाधि का फूल जो खिलेगा एक दिन
उसकी संभावना भीतर लिए हो !”
वास्तविक जीवन दर्शन को व्यक्त करती सुंदर अनुभूति
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