रविवार, मई 10

माँ बनकर कभी करे दुलार


 माँ बनकर कभी करे दुलार 


कदम कदम पर राह दिखाता 
कोई चलता साथ हमारे, 
सुख-दुःख में हर देशकाल में 
करता रहता कई इशारे !

नहीं अकेले पल भर भी हम 
कोई जागा रहता निशदिन, 
पल भर हम यदि थम कर सोचें 
कौन साथ ? जब आये दुर्दिन !

उसकी महिमा वही जानता 
माँ बनकर कभी करे दुलार, 
कभी पिता सा हाथ पकड़कर 
लिए जाता भवसागर पार !

हमें भुलाने की आदत है 
वह खुद अपनी याद दिलाता,
अति सुख में जब आँख मूँदते 
दुःख में नाम अधर पर आता !

उसके पथ का राही सबको 
इक ना इक दिन बनना होगा,
प्रीत समुंदर सोया उर में  
कल कल छल छल बहना होगा !

तब तक सारे खेल-खिलौने 
माया के सँग खेल रहे हैं, 
जब तक थके नहीं हैं मानव 
तब तक दूरी झेल रहे हैं !

7 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा आपने।... वो हर रूप धर कर हमारे साथ हर कदम है ।...बस उसकी उपस्थिति को हमें महसूस करना होगा।

    सादर

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (04 मई 2020) को 'ममता की मूरत माता' (चर्चा अंक-3698) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    *****
    रवीन्द्र सिंह यादव

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  3. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति ममत्व समेटे हुए आदरणीया दीदी.
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. उसकी महिमा वही जानता
    माँ बनकर कभी करे दुलार,
    कभी पिता सा हाथ पकड़कर
    लिए जाता भवसागर पार !

    बहुत सुंदर ,भावपूर्ण सृजन अनीता जी

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