माँ बनकर कभी करे दुलार
कदम कदम पर राह दिखाता
कोई चलता साथ हमारे,
सुख-दुःख में हर देशकाल में
करता रहता कई इशारे !
नहीं अकेले पल भर भी हम
कोई जागा रहता निशदिन,
पल भर हम यदि थम कर सोचें
कौन साथ ? जब आये दुर्दिन !
उसकी महिमा वही जानता
माँ बनकर कभी करे दुलार,
कभी पिता सा हाथ पकड़कर
लिए जाता भवसागर पार !
हमें भुलाने की आदत है
वह खुद अपनी याद दिलाता,
अति सुख में जब आँख मूँदते
दुःख में नाम अधर पर आता !
उसके पथ का राही सबको
इक ना इक दिन बनना होगा,
प्रीत समुंदर सोया उर में
कल कल छल छल बहना होगा !
तब तक सारे खेल-खिलौने
माया के सँग खेल रहे हैं,
जब तक थके नहीं हैं मानव
तब तक दूरी झेल रहे हैं !
सही कहा आपने।... वो हर रूप धर कर हमारे साथ हर कदम है ।...बस उसकी उपस्थिति को हमें महसूस करना होगा।
जवाब देंहटाएंसादर
सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आभार !
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (04 मई 2020) को 'ममता की मूरत माता' (चर्चा अंक-3698) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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रवीन्द्र सिंह यादव
मातृ दिवस पर सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति ममत्व समेटे हुए आदरणीया दीदी.
जवाब देंहटाएंसादर
उसकी महिमा वही जानता
जवाब देंहटाएंमाँ बनकर कभी करे दुलार,
कभी पिता सा हाथ पकड़कर
लिए जाता भवसागर पार !
बहुत सुंदर ,भावपूर्ण सृजन अनीता जी