जन्मदिन की कविता
हे अनाम ! तुझे प्रणाम
जाने किस युग में आरम्भ हुई होगी यह यात्रा
या अनादि है यह भी तेरी तरह
कभी पत्थर, पौधा, जलचर, नभचर या थलचर बनते-बनते
मिला होगा अन्ततः यह मानव तन
फिर इस तन की यात्रा में भी
कभी राजा, कभी रंक
कभी स्त्री कभी पुरुष
कभी अशिक्षित कभी विद्वान्
अनेक धर्मों, आश्रमों, वर्णों
में लिए होंगे जन्म
गढ़ते-गढ़ते इतने काल से
इतने दीर्घ कालखण्ड में
आज जो बन गया है मन
वह जानता है कि
अब मंजिल निकट है
देख लिए सारे खेल
देख ली तेरी माया
यकीनन इसने बहुत लुभाया
नाजुक रिश्तों के मजबूत बन्धनों में बाँधा
सुख-दुःख के हाथों से बहुत राँधा
अहंकार की भट्टी में तपाया
कल्पनाओं के झूले में झुलाया
पर अब जाकर तेरा मर्म कुछ-कुछ समझ में आने लगा है
अब खत्म हुई यह दौड़
अब घर याद आने लगा है
जन्म-मृत्यु के इस चक्र से जब कोई छूट जाता है
फिर जब मौज होगी तो फिर आता है
पर तब कैदी नहीं होता प्रारब्ध का
तेरी तरह बस
मुस्कानें बिखेरता और गीत गाता है !
"अब खत्म हुई यह दौड़
जवाब देंहटाएंअब घर याद आने लगा है" सुंदर।
स्वागत व आभार !
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक।
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाएँ।
पत्रकारिता दिवस की बधाई हो।
स्वागत व आभार !
हटाएंमुझे नहीं पता आपने ये कविता किसके लिए लिखी है। कल 30 मई को मेरा भी जन्मदिन था। ना जाने क्यों पिछले कई दिनों से यही लग रहा है कि कितना पसारा फैला लिया है तुमने, अब समेटना शुरू कर दो.... अब उल्टी गिनती शुरू कर दो।
जवाब देंहटाएंअब घर याद आने लगा है
जन्म-मृत्यु के इस चक्र से जब कोई छूट जाता है
फिर जब मौज होगी तो फिर आता है
पर तब कैदी नहीं होता प्रारब्ध का
तेरी तरह बस
मुस्कानें बिखेरता और गीत गाता है !
शायद आपके शब्दों में गुरुदेव का कोई संदेश छुपा है!!!
वाह ! तब तो यह कविता आपके लिए ही लिखी गयी है बल्कि अस्तित्त्व ने लिखवा दी है
हटाएंसमग्र की गहन प्रतीति .. आपका आभार इस इंगति के लिए ।
जवाब देंहटाएंस्वागत है !
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