हर अनुभव का इक फूल बना लें !
जीवन में जो भी घटता है
हर अनुभव का इक फूल बना लें !
छोटे-छोटे इन फूलों को
गूँथ सत्य की
इक वैजयंती माल बना लें !
घटना बाहर-बाहर रहती
अनुभूति अंतर में होती
रोज-रोज नए सत्यों से
करें सामना
मन के भीतर इन सत्यों को ढाल बना लें !
गिर जाये हर मूढ़ मान्यता
हो भीतर का हर कोना जगमग
जो जगीं अचानक उद्धघाटन से
किसी सत्य के
उन मुस्कानों का हार बना लें !
सुख जो बरबस बरस रहा
उस महाकोष से
उसके आने में जो बाधा
है असत्य की, उसे गिरा दें
बहे निरन्तर अनुपम सच वह
गंगा की इक धार बना लें !
चट्टानों में अहंकार की
दबा हुआ जो
प्रकट हो सके
कल- कल, छल-छल
इक धारा में
सच वह कोमल
कितना निर्मल
नीलकमल की पाँखुरियों सा
सुंदर इक उपहार बना लें !
कितने सुकोमल सुंदर शब्द ! गहन चिंतन के लिए भारी भरकम शब्दों का प्रयोग जरूरी नहीं।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रतिक्रिया ! स्वागत व आभार मीना जी !
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंआभार !
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 01 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार यशोदा जी !
हटाएंबहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंअनुभूति के फूल, अति सुंदर रचना 💐💐
जवाब देंहटाएंआभार !
हटाएंमधु की सुराही सी ...अप्रतिम !
जवाब देंहटाएंसुस्वागतम अमृता जी !
हटाएंबहुत ही खूबसूरत सृजन आदरणीय दी.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अनीता जी !
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