तकनीक और प्रकृति
रिश्ता निभाने का साधन मान लिया है
मोबाइल को, आज की पीढ़ी ने
न कागज की छुअन
न कलम से दिल का हाल लिखना
जिसमें सच्चाई झलकती थी
मन कागज पर उतर जाता था
उन शब्दों के साथ
जो केवल और केवल
उस व्यक्ति विशेष के लिए होते थे
आज वे ही संदेश जो हजारों पढ़ चुके हैं
जिनमें कोई सच्चाई नहीं है
वे भेज दिए जाते हैं
खोखले शब्द... जो उधार के हैं
क्षण भर के लिए होता होगा शायद
जिनका असर
अगले ही पल व्यर्थ हो जाते हैं
हाँ, खोखले हो गए हैं आज रिश्ते
क्योंकि व्यक्ति खाली है भीतर
भावों में डूबना ही भूल गया है
एक आभासी दुनिया में ही जीता है
पर्दे पर चलती तस्वीरों को ही सच मानता
वास्तविक स्पर्श से भी वंचित कर दिया गया है
प्रकृति से उसे यह दंड ही तो मिला है
सिकुड़ गया है हर कोई अपने खोल में
छोटे से यन्त्र में डूबा है
न जाने किस की कमी पूर्ण करता है यह
जो थमा दिया है बच्चों के हाथों में
अब शिक्षा का साधन बना है
नहीं, मानव का भविष्य इसमें नहीं है
इसे हटाना होगा
असली संवाद को लाना होगा
और व्यक्त करना होगा प्रेम
तब नहीं मरेंगे असमय
अकाल मृत्यु से युवा और किशोर
जो सूखी जाती है
नहीं टूटेगी जीवन की वह डोर !
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 29 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (30-6-2020 ) को "नन्ही जन्नत"' (चर्चा अंक 3748) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत भयावहता के साथ पसरता जा रहा तकनीक से इंसानों विशेषकर बच्चों और युवाओं का रिश्ता | बहुत अच्छा लिखा आपने अनीता जी |
जवाब देंहटाएंसही कहा है आपने रेणु जी, आभार !
हटाएंबहुत सुंदर और सार्थक सृजन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंआज के दौर का सच।
जवाब देंहटाएंयथार्थ अभिव्यक्ति
अनिता जी।
सादर।
सार्थक सृजन
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