लिखे जो खत तुझे
हाथ से लिखे शब्द
मात्र शब्द नहीं होते
उनमें हृदय की संवेदना भी छिपी होती है
मस्तिष्क की सूक्ष्म तंत्रिकाओं का कम्पन भी
गहरा हो जाता है कभी कोई शब्द
कभी कोई हल्का
कभी व्यक्त हो जाती है उनमें
लिखने वाले की ख़ुशी
कभी दर्द
जो एक बूंद बन छलक जाये
क्यों न हम फिर से लिख भेजें संदेश
स्वयं के गढ़े शब्दों से
चाहे वे कितने ही अनगढ़ क्यों न हों
न हो उनमें कोई दार्शनिकता या कोई सीख
बस वे हमारे अपने हों
क्यों न पुनः पत्र लिखें
अपने हाथों से
चाहे चन्द पंक्तियाँ ही
कोरी, खालिस अपने मन से उपजी
शुद्ध मोती की तरह पावन !
क्यों न पुनः पत्र लिखें
जवाब देंहटाएंअपने हाथों से
चाहे चन्द पंक्तियाँ ही
कोरी, खालिस अपने मन से उपजी
शुद्ध मोती की तरह पावन !
बहुत सुंदर सोच भी और सृजन भी ,सादर नमन आपको
स्वागत व आभार कामिनी जी !
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (01-07-2020) को "चिट्टाकारी दिवस बनाम ब्लॉगिंग-डे" (चर्चा अंक-3749) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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बहुत बहुत आभार !
हटाएंबहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंबस वे हमारे अपने हों
जवाब देंहटाएंक्यों न पुनः पत्र लिखें
अपने हाथों से
चाहे चन्द पंक्तियाँ ही
कोरी, खालिस अपने मन से उपजी
शुद्ध मोती की तरह पावन !
बेहद खूबसूरत ख्याल ... अनुपम सृजन
स्वागत व आभार सदा जी !
हटाएंअंतस को छूती प्रत्येक पंक्ति ...हृदयस्पर्शी सृजन आदरणीय दी .
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंवाह!बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार शुभा जी !
हटाएंसत्य है पत्र में लिखे शब्द अहसास होते हे लिखने वाले और पढ़ने वाले दोनों के
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुन्दर विचार...
जवाब देंहटाएंसच कहा ,हाथ सेलिखे शब्द सिर्फ शब्द नही होते
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