गुरुवार, जुलाई 23

मन


मन

भरता जाता है भीतर जगत का साजोसामान सुंदर स्थान...रिश्तों का सम्मान पर खाली का खाली ही रहता है फिर लगाता है उसमें अवरोध कभी ख़ुशी कभी गम के जब डोलने लगती है उसकी नैया संसार सागर पर...अचानक मिलता हुआ प्रतीत होता है कहीं दूर आकाश धरती से वह जाना चाहता है वहाँ पर वह बिंदु कभी नहीं पाता ! उसकी तलाश जारी है कम से कम अब हल्की है उसकी नाव जो तिरती रहती है सागर की लहरों पर अनायास !

8 टिप्‍पणियां:

  1. 'वह जाना चाहता है वहाँ, पर वह बिंदु कभी नहीं पाता'। बहुत खूब !

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  2. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार( 24-07-2020) को "घन गरजे चपला चमके" (चर्चा अंक-3772) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।

    "मीना भारद्वाज"

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  3. जब तक सांस है मन की उड़ान को रोकना कहाँ सम्भव है ...
    साधक ही साध पाते हैं ...

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    1. एक न एक दिन तो हरेक को साधक बनना ही पड़ेगा

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