मन
भरता जाता है भीतर
जगत का साजोसामान
सुंदर स्थान...रिश्तों का सम्मान
पर खाली का खाली ही रहता है
फिर लगाता है उसमें अवरोध
कभी ख़ुशी कभी गम के
जब डोलने लगती है उसकी नैया
संसार सागर पर...अचानक
मिलता हुआ प्रतीत होता है
कहीं दूर आकाश धरती से
वह जाना चाहता है वहाँ
पर वह बिंदु कभी नहीं पाता !
उसकी तलाश जारी है
कम से कम अब हल्की है उसकी नाव
जो तिरती रहती है
सागर की लहरों पर अनायास !
'वह जाना चाहता है वहाँ, पर वह बिंदु कभी नहीं पाता'। बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंक्षितिज कहाँ मिलता है किसी को...
हटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार( 24-07-2020) को "घन गरजे चपला चमके" (चर्चा अंक-3772) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।
…
"मीना भारद्वाज"
सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंस्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंजब तक सांस है मन की उड़ान को रोकना कहाँ सम्भव है ...
जवाब देंहटाएंसाधक ही साध पाते हैं ...
एक न एक दिन तो हरेक को साधक बनना ही पड़ेगा
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