पंच तत्व पावन हैं
अश्रु की बाढ़ आयी
आज गगन रोता है,
खेत, गाँव, नदी, विजन
सभी को डुबोता है !
क्या भू की पीड़ा ही
वाष्पित हो नहीं उठी,
कण-कण बीमार हुआ
जलवायु विषाक्त बनी !
विष घुला पानियों में
हवा हुई धुँआ-धुँआ,
मनुज की लालसा ने
आसमानों को छुआ !
पशुओं का आश्रय भी
लील गया लोभ दैत्य,
बाँध तोड़ बिखर गयी
वसुधा की पीड़ा यह !
स्वच्छ बने आँचल अब
पुनःनव सृष्टि रचाए,
मानव फिर एक बार
अमरता पथ दिखाए !
पंच तत्व पावन हैं
सादर सुसम्मान हो,
अपने ही हाथों ना
स्वयं का अवमान हो !
बहुत सुंदर!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएं'पंच तत्व पावन हैं'...... पंच तत्व ही सार रूप में भगवान हैं।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 3.9.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
बहुत बहुत आभार !
हटाएंभावों की गहन अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसुन्दर और सार्थक
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर पोस्ट पर्यावरण की पीड़ा को आज अनुभव करने की आवश्यकता है।
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