अमर स्पर्श
“वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान
उमड़ कर आँखों से चुपचाप, बही होगी कविता अनजान”
इन कालजयी पंक्तियों के रचियता छायावाद के प्रमुख स्तम्भ, हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि, विचारक और दार्शनिक सुमित्रानंदन पंत को यूँ तो स्कूल में पढ़ा था किन्तु एक बार उनकी कुछ आध्यात्मिक कविताएं पढ़ने का सुअवसर मिला और संयोग की बात है कि उन्हीं दिनों योग साधना में प्रवेश हुआ था. जब इन कविताओं को पढ़ा तो लगा जैसे अंतर आकाश खुलता जा रहा है. पंत को बचपन से ही ईश्वर में अटूट आस्था थी। वे घंटों-घंटों तक ईश्वर के ध्यान में मग्न रहते थे। अपने काव्य सृजन को भी ईश्वर पर आश्रित मानकर कहते थे - 'क्या कोई सोचकर लिख सकता है भला, उसे जब लिखवाना होगा, वो लिखवाएगा।'
‘’खिल उठा हृदय,
पा स्पर्श तुम्हारा अमृत अभय !
खुल गए साधना के बंधन,
संगीत बना, उर का रोदन,
अब प्रीति द्रवित प्राणों का पण,
सीमाएँ अमिट हुईं सब लय।’’
कवि अपनी चेतना को अनंत तक विस्तृत पाता है और इस अनुभव को शब्दों में इस तरह पिरोता है कि पढ़ते हुए पाठक को किसी ऋषि आत्मा की निकटता का अहसास होता है -
‘’सिन्धु मेरी हथेली में समा जाते हैं,
उन्हें पी जाता हूँ मैं,
जब प्यासा होता हूँ ।
प्राणों की आग में गल कर,
मैं ही उन्हें भरता हूँ ।
जब
सूख जाते हैं वे ।
सोने के दर्पण सी दमकती-
प्राणों की आग,
जिसमें आनंद
मुख देखता है ।’’
क्रमशः
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 03 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
हटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 04-09-2020) को "पहले खुद सागर बन जाओ!" (चर्चा अंक-3814) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.
…
"मीना भारद्वाज"
बहुत बहुत आभार !
हटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंप्रकृति के सुकुमार कवि पन्त जी को नमन।
स्वागत व आभार !
हटाएंवाह! आध्यात्मिकता की आहटों को मन में भरती पंक्तियाँ!!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंपंत जी को नमन।
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सृजन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंस्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंआदरणीया अनिता जी, छायावाद के एक स्तंभ आ सुमित्रानंदन पंत जी की रचनाओं को उद्धृत आपने उनकी यादों को ताजा कर दिया। हार्दिक साधुवाद!--ब्रजेन्द्रनाथ
जवाब देंहटाएंआध्यात्म की अनुभूति कराती रचना
जवाब देंहटाएं- 'क्या कोई सोचकर लिख सकता है भला, उसे जब लिखवाना होगा, वो लिखवाएगा।'
जवाब देंहटाएंअनुपम संदेश !!! कविवर्य की रचनाओं के बेहतरीन अंश साझा करने हेतु बहुत बहुत आभार अनिताजी।