जो खिल रहा अनंत में
एक ही तो बात है
एक ही तो राज है,
एक को ही साधना
एक से दिल बाँधना !
एक ही आनंद है
वही जीवन छंद है,
बह रहा मकरंद है
मदिर कोई गंध है !
खिले वही अनंत में
दुःख-विरह के अंत में,
राधा-श्याम कंत में
ऋतुराजा वसंत में !
रहे यदि बंटे हुए
जीवन से कटे हुए,
तीर से बिंधे हुए
सुख विलग रुंधे हुए !
राज से अनभिज्ञ है
मूढ़ कोई विज्ञ है,
एक की हो साधना
उसी की आराधना !
बहुत सुन्दर और प्रेरक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर मंगलवार 13 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
हटाएंस्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुइट आभार !
जवाब देंहटाएंएक साधे सब सधे ... अति सुंदर ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवाह, बहुत सुन्दर!... अप्रतिम!
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