मौन का उजास
जब चुप हो जाती है
मन की टेर
नहीं रह जाती कोई झूठी पहचान
गिर जाते हैं सारे भेद
जाति, धर्म, वर्ण की दीवारें
टूट कर बिखर जाती हैं
जब सारे आवरण उतार
केवल होना मात्र शेष रह जाता है
उस एकाकी क्षण में होना ही
उसकी छुअन से स्पर्शित कर जाना है
जो हर जगह है
और वह छुअन ही प्रेम से भर जाती है
जब तक दुई है मन में
बंटा है दो में
एक को छोड़ना दूसरे को पाना है
तब तक शब्दों का जगत है
जब झर जाते हैं सारे द्वंद्व
तभी वह मौन उगता है
जिसे भर देता है अस्तित्त्व
असीम आनंद से !
सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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