ठहरे विमल झील का दर्पण
पूर्ण चन्द्रमा, पूर्ण समंदर
पूर्ण, पूर्ण से मिलने जाये,
माने मन स्वयं को अधूरा
अधजल गगरी छलकत जाये !
चाहों के मोहक जंगल में
इधर भागता उधर दौड़ता,
कुछ पाने की कुछ करने की
सदा किसी फ़िराक में रहता !
ठहरे विमल झील का दर्पण
शांत सदा भीतर तल झलके,
जिस पर टिकी हुई वह धरती
थिर अकंप आधार वह दिखे !
मन लहरों सा जब भी कँपता
भुला दिया बस निज आधार,
उस तल से संदेसे आते
सदा बुलाता भेजे दुलार !
हर कम्पन उसकी रहमत है
फिर-फिर पूर्ण की चले तलाश,
जाने खुद को पूर्ण पुष्प सा
हर सिंगार या रूद्र पलाश !
सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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