गुरुवार, नवंबर 26

आहट

आहट

अनजाने रस्तों से

कोई आहट आती है

बुलाती है सहलाती सी लगती

कौतूहल से भर जाती है

जाने किस लोक से

भर जाती आलोक से

मुदित बन जाती है

सुधियाँ जगाती

कौन जाने है किसकी

आँख पर रहे ठिठकी

शायद कुछ राज खुले

स्वयं न बताती

फिजाओं में घुल जाती है

सुनी सी पर अजानी भी

भेद क्यों न खोलती

जाने क्या कहती वह

 क्या गीत गुनगुनाती है 

15 टिप्‍पणियां:

  1. आहट कभी रहस्यमयी लगती है तो कभी परिचित सी भी।

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    1. कविता के मर्म को समझकर सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आभार !

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  2. सुंदर सृजन के लिए आपको बधाई।

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  3. यदि उस आहट को कोई एक बार पहचान ले तो भेद खुल सा जाता है । तब परम घटना घट जाती है । अति सुंदर ।

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  4. जाने इतने अनजाने भाव, स्वप्न और कृत्य मन में भर जाति है ये आहट ...

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