बस इतना सा ही सरमाया
गीत अनकहे, उश्ना उर की
बस इतना सा ही सरमाया !
काँधे पर जीवन हल रखकर
धरती पर जब कदम बढाये
कुछ शब्दों के बीज गिराकर
उपवन गीतों से महकाए !
प्रीत अदेखी, याद उसी की
बस इतना सा ही सरमाया !
कदमों से धरती जब नापी
अंतरिक्ष में जा पहुँचा मन
कुछ तारों के हार पिरोये
डोल चन्द्रमाओं के सँग-सँग !
कभी स्मृति कभी जगी कल्पना
बस इतना सा ही सरमाया !
काँधे पर जीवन हल रखकर
जवाब देंहटाएंधरती पर जब कदम बढाये
कुछ शब्दों के बीज गिराकर
उपवन गीतों से महकाए !
स्वागत व आभार !
हटाएंसुन्दर नवगीत।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार सुशील जी व शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएं