उतना ही जल नभ से बरसे
जर्रे-जर्रे में बसा हुआ
रग-रग में लहू बना बहता,
वाणी से वह प्रकटे सबकी
माया से परे सदा रहता !
छह रिपुओं को यदि हरा दिया
उसके ही दर पर जा पहुँचे,
अंतर में जितनी प्यास जगी
उतना ही जल नभ से बरसे !
जाने कब से यह सृष्टि बनी
परम संतों ने उसे पाया,
जिसने अपने भीतर झाँका
बस गीत उसी का फिर गाया !
महादानी वह सर्व समर्थ
दीनों का है रखवाला वह,
जो श्रद्धा से भजता उसको
अंतर उसको दे डाला यह !
पल भर भी उससे दूर नहीं
वह अंतर्यामी बन रहता,
जीवन इक सुंदर उत्सव है
मन कष्टों को हँस कर सहता !
समता का भाव भरे दिल में
वह सुख का पाठ पढ़ाता है,
हर भेद दिलों से मिट जाए
सेवा का मर्म सिखाता है !
उसकी महिमा क्या जग जाने
जो अपनी राह चले जाता,
पल में सोने को धूल करे
भू को पल में स्वर्ग बनाता !
'उसकी महिमा क्या जग जाने
जवाब देंहटाएंजो अपनी राह चले जाता,
पल में सोने को धूल करे
भू को पल में स्वर्ग बनाता !'
बिल्कुल सही कहा आपने।
स्वागत व आभार !
हटाएंजर्रे-जर्रे में बसा हुआ
जवाब देंहटाएंरग-रग में लहू बना बहता,
वाणी से वह प्रकटे सबकी
माया से परे सदा रहता !
छह रिपुओं को यदि हरा दिया
उसके ही दर पर जा पहुँचे,
अंतर में जितनी प्यास जगी
उतना ही जल नभ से बरसे !
जाने कब से यह सृष्टि बनी
परम संतों ने उसे पाया,
जिसने अपने भीतर झाँका
बस गीत उसी का फिर गाया !
महादानी वह सर्व समर्थ
दीनों का है रखवाला वह,
जो श्रद्धा से भजता उसको
अंतर उसको दे डाला यह
सत्य और सुंदर , बहुत ही बढ़िया, सादर नमन
स्वागत व आभार ज्योति जी !
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (21-03-2021) को "फागुन की सौगात" (चर्चा अंक- 4012) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
बहुत बहुत आभार !
हटाएंछह रिपुओं को यदि हरा दिया
जवाब देंहटाएंउसके ही दर पर जा पहुँचे,
अंतर में जितनी प्यास जगी
उतना ही जल नभ से बरसे !
आपकी हर रचना गहन भाव लिए होती है ... मुझे दो बार तो पढनी ही पड़ती है :)
बहुत सुन्दर भाव
आध्यात्मिकता और जीवन दर्शन से ओतप्रोत आपकी रचना बहुत हाई उत्कृष्ट है,आपको सादर नमन।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता है यह आपकी अनीता जी । अपने-अपने ढंग से लोग इसके अर्थ निकाल सकते हैं और अपने-अपने विचारों के अनुरूप इससे प्रेरणा ले सकते हैं ।
जवाब देंहटाएंसही कहा है आपने, जाकी रही भावना जैसी !
हटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंउसके गीतों को गाने के साथ-साथ आपके गीतों को भी हृदय गुनगुनाता रहता है । अति सुन्दर भाव के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंवह एक परम पिता जो सब कुछ करता है और इस श्रीष्टि को चलाता है उसको होना ही प्राकश है जीवन में ...
जवाब देंहटाएं