मन सुमन बना खिलना चाहे
इस पल में कल को ले आना
बीती बात को दोहराना
दिलों की पुरानी आदत है !
जीवन प्रतिक्षण कुछ और बने
रहो गतिशील बस यही कहे
मुड़ देखे, मन की चाहत है !
रहो गतिशील बस यही कहे
मुड़ देखे, मन की चाहत है !
हर घटना कुछ दे मुक्त हुई
वह घड़ी स्वयं में रिक्त हुई
जा टिकना मिथ्या राहत है !
वह घड़ी स्वयं में रिक्त हुई
जा टिकना मिथ्या राहत है !
नव जीवन में जगना चाहे
मन सुमन बना खिलना चाहे
जो पल में जिए इबादत है !
मन सुमन बना खिलना चाहे
जो पल में जिए इबादत है !
मृत को क्यों ‘अब’ में ढोएं हम
नित नवल निशा में सोएं हम
रहे संग सदा विरासत है !
नित नवल निशा में सोएं हम
रहे संग सदा विरासत है !
"जीवन प्रतिक्षण कुछ और बने
जवाब देंहटाएंरहो गतिशील बस यही कहे
मुड़ देखे, मन की चाहत है !"
बहुत अच्छी बात कही आपने।
स्वागत व आभार यशवंत जी !
हटाएंबहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंसुंदर और सकारात्मक सोच लिए हुए प्यारी कविता ।
जवाब देंहटाएंसकारात्मक सोच कविता अच्छी है
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारा सा गीत...
जवाब देंहटाएंसादर,
डॉ. वर्षा सिंह
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 04.03.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत सुंदर प्रेरक कविता आदरणीय अनीता दीदी, सादर नमन ..
जवाब देंहटाएंआप सभी विद्वजनों का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंनव जीवन में जगना चाहे
जवाब देंहटाएंमन सुमन बना खिलना चाहे
जो पल में जिए इबादत है !
बहुत सुन्दर संदेश देती बेहतरीन रचना । सादर नमन ।
अनुराधा जी व मीना जी स्वागत व आभार !
हटाएंसकारात्मक सोच, सुंदर संदेश
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गीत।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंवाह
वाह....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बात ..कितना कुछ कह दिया इन साधारण से शब्दों में..
बहुत बढ़िया..