वह मन को ख्वाब दे
खोया हुआ सा लगता
खोया नहीं है जो,
जिसे पाने की तमन्ना
पाया हुआ है वो !
वही श्वास बना तन में
जीवन को आंच दे,
वही दौड़ता लहू संग
वह मन को ख्वाब दे !
जो अभी-अभी यहीं था
फिर ढक लिया किसी ने,
जैसे छुप गयी किरण हो
बदलियों के पीछे !
उसे ढूंढने न जाना
जरा थमे रहना
धीरे से उसके आगे
दिले-पुकार रखना !
वह सुन ही लेता चाहे
मद्धिम हो स्वर बहुत,
सच्ची हो दिल की चाहत
बस एक यही शर्त !
बहुत सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंजो अभी-अभी यहीं था
जवाब देंहटाएंफिर ढक लिया किसी ने,
जैसे छुप गयी किरण हो
बदलियों के पीछे !
न जाने हम क्या ढूँढते फिरते हैं ..... सुन्दर भावों से सजी सुन्दर रचना ...
सुन्दर रचना। ।।।। पाया हुआ कुछ खोया सा। ।।।।
जवाब देंहटाएंसच्ची हो दिल की चाहत, बस एक यही शर्त। आपकी बात ठीक ही लगती है माननीया अनीता जी। वैसे चोट भी तभी गहरी लगती है जब दिल की वह सच्ची चाहत पूरी न हो। प्रशंसनीय सृजन हेतु अभिनंदन आपका।
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत रचना, भा गई मन को, हार्दिक शुभकामनाएं अनीता जी
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंआप सभी विद्वजनों का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंआप की पोस्ट बहुत अच्छी है आप अपनी रचना यहाँ भी प्राकाशित कर सकते हैं, व महान रचनाकरो की प्रसिद्ध रचना पढ सकते हैं।
जवाब देंहटाएं