यह विश्वास रहे अंतर में
शायद एक परीक्षा है यह
जो भी होगा लायक इसके,
उसको ही तो देनी होगी
शायद एक समीक्षा है यह !
जीवन के सुख-दुखका पलड़ा
सदा डोलता थिर कब रहता,
क्या समता को प्राप्त हुआ है
शेष रही अपेक्षा है यह !
तन दुर्बल हो मन भी अस्थिर
किन्तु साक्षी भीतर बैठा,
शायद यही पूछने आया
क्या उसकी उपेक्षा है यह !
जिसने खुद को योग्य बनाया
प्रकृति ठोंक-पीट कर जांचे,
इसी बहाने और भी शक्ति
भीतर भरे सदिच्छा है यह !
यह विश्वास रहे अंतर में
उसका हाथ सदा है सिर पर,
पल-पल की है खबर हमारी
शायद उसकी चिंता है यह !
हुए सफल निकल आएंगे
हृदय को दृढ़तर पाएंगे,
चाहे कड़ी परीक्षा हो यह
कृपालु की दीक्षा है यह !
अति उत्तम बहुत ही सुंदर रचना सादर नमन, नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर। चैत्र नवरात्र की बधाई और शुभकामना!!!
जवाब देंहटाएंआप सभी सुधीजनों का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी कविता रची है अनीता जी आपने। निस्संदेह!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंतन दुर्बल हो मन भी अस्थिर
जवाब देंहटाएंकिन्तु साक्षी भीतर बैठा,
शायद यही पूछने आया
क्या उसकी उपेक्षा है यह !
बस इस परीक्षा में सफल हो पायें ..
बहुत सुन्दर और सार्थक ।
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बहुत सुंदर प्रेरक संदेश भरी कृति,आपको सादर अभिवादन ।
जवाब देंहटाएंआप अभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंआप की पोस्ट बहुत अच्छी है आप अपनी रचना यहाँ भी प्राकाशित कर सकते हैं, व महान रचनाकरो की प्रसिद्ध रचना पढ सकते हैं।
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