गुरुवार, अप्रैल 8

उस दिन

उस दिन 

यह सारी कायनात 

उस दिन चलेगी 

हमारे इशारे पर भी 

जब हमारी रजा 

उस मालिक की रजा से एक हो जाएगी 

जब हमारी दुआओं में 

हरेक की सलामती की ख्वाहिश भी 

सिमट आएगी 

जब चाहतें पाक होंगी और दिल मासूम 

तब जो घटेगा वह हमें भी 

नहीं होगा मालूम 

पर रहमतों की बूंदें बिन बात ही बरस जायेंगी  

हमारी झोली अचानक ही भर जाएगी 

जब श्रद्धा का बिरवा मन में रोप दिया जाएगा 

तब उस अनाम का वरदान 

दिन-रात मिलने लगेगा 

जब इस सच की आंच भीतर झलक जाएगी 

तब दुनिया जैसी है वैसी ही नजर आएगी 

अपना सुख-दुख जब औरों का सुख-दुख बन जाएगा 

तब वह मालिक हमारे द्वारा मुस्कुराएगा !

 

18 टिप्‍पणियां:

  1. मालिक और हमारी रज़ा एक हो जाये तो बात ही क्या । काश ऐसा हो पाए कभी ।
    भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।

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  2. ख़ुदी को कर बुलन्द इतना कि हर तक़दीर से पहले ,ख़ुदा बन्दे से ख़द पूछे - बता तेरी रज़ क्या है.

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    1. वाह ! शुक्रिया, इकबाल का यह सुंदर शेर याद दिलाने के लिए।

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  3. जब इस सच की आंच भीतर झलक जाएगी

    तब दुनिया जैसी है वैसी ही नजर आएगी
    बहुत सुंदर।

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  4. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना

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  5. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय अनीता दीदी, आपकी रचना जीवन के दृष्टिकोण का आईना दिखा रही है ।आपको मेरा नमन ।

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  6. बहुत सुंदर और सार्थक अभिव्यक्ति।

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  7. आप सभी विद्वजनों का स्वागत व आभार !

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