उस दिन
यह सारी कायनात
उस दिन चलेगी
हमारे इशारे पर भी
जब हमारी रजा
उस मालिक की रजा से एक हो जाएगी
जब हमारी दुआओं में
हरेक की सलामती की ख्वाहिश भी
सिमट आएगी
जब चाहतें पाक होंगी और दिल मासूम
तब जो घटेगा वह हमें भी
नहीं होगा मालूम
पर रहमतों की बूंदें बिन बात ही बरस जायेंगी
हमारी झोली अचानक ही भर जाएगी
जब श्रद्धा का बिरवा मन में रोप दिया जाएगा
तब उस अनाम का वरदान
दिन-रात मिलने लगेगा
जब इस सच की आंच भीतर झलक जाएगी
तब दुनिया जैसी है वैसी ही नजर आएगी
अपना सुख-दुख जब औरों का सुख-दुख बन जाएगा
तब वह मालिक हमारे द्वारा मुस्कुराएगा !
आमीन !
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंमालिक और हमारी रज़ा एक हो जाये तो बात ही क्या । काश ऐसा हो पाए कभी ।
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण अभिव्यक्ति ।
ख़ुदी को कर बुलन्द इतना कि हर तक़दीर से पहले ,ख़ुदा बन्दे से ख़द पूछे - बता तेरी रज़ क्या है.
जवाब देंहटाएंवाह ! शुक्रिया, इकबाल का यह सुंदर शेर याद दिलाने के लिए।
हटाएंरज़ को रज़ा समझें
जवाब देंहटाएंजब इस सच की आंच भीतर झलक जाएगी
जवाब देंहटाएंतब दुनिया जैसी है वैसी ही नजर आएगी
बहुत सुंदर।
स्वागत व आभार !
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसार्थक और भावप्रवण रचना।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत लेखन मैम
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय अनीता दीदी, आपकी रचना जीवन के दृष्टिकोण का आईना दिखा रही है ।आपको मेरा नमन ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सार्थक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंआप सभी विद्वजनों का स्वागत व आभार !
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