जीवन का स्रोत
हज़ार-हज़ार रूपों में वही तो मिलता है
हमें प्रतिभिज्ञा भर करनी है
फिर उर को मंदिर बना
उसकी प्रतिष्ठा कर लेनी है
यूँ तो हर प्राणी का वही आधार है
किंतु अनजाना ही रह जाता
बस चलता जीवन व्यापार है
जाग कर आँख भर उसे देख लेना है
जन्मों की तलाश को मंज़िल मिले
इतना तो जतन करना है
वह आकाश की तरह फैला है
कण-कण में छिपा
पर पारद की तरह फिसल जाता है
कभी दो पलों में एक साथ नहीं मिला
अब उसे मना लेना है
जीवन का स्रोत है वह
उसी जगह जाकर उसे पा लेना है
जहाँ मौन है निस्तब्धता है
जो मन के पार मिलता है
उसके आने से ही
सुप्त हृदय कमल खिलता है !
बहुत खूब कहा अनीता जी, कि ----वह आकाश की तरह फैला है
जवाब देंहटाएंकण-कण में छिपा
पर पारद की तरह फिसल जाता है ---वाह, अद्भुत
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (01-09-2021) को चर्चा मंच "ज्ञान परंपरा का हिस्सा बने संस्कृत" (चर्चा अंक- 4174) पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।--
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार!
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 1 सितंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
बेहतरीन भाव!!
जवाब देंहटाएंजीवन का स्रोत है वह
जवाब देंहटाएंउसी जगह जाकर उसे पा लेना है
जहाँ मौन है निस्तब्धता है
जो मन के पार मिलता है
उसके आने से ही
सुप्त हृदय कमल खिलता है !
बहुत सुंदर भावों भरा चिंतन ।
बहुत खूब..'जन्मों की तालाश....... कण कण में छिपा'
जवाब देंहटाएंअलकनंदा जी, अनुपमा जी, उर्मिला जी, जिज्ञासा जी व सुमन जी आप सभी का स्वागत व आभार!
जवाब देंहटाएंसूर्य ही ऊर्जा का स्रोत है । इस धरती पर जो भी जीवन है सूरज की ऊर्जा से ही संभव है । गहन भाव ।
जवाब देंहटाएंसही कह रही हैं आप
हटाएंजो मन के पार मिलता है
जवाब देंहटाएंउसके आने से ही
सुप्त हृदय कमल खिलता है !
बहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति,सादर नमन अनीता जी ।
स्वागत व आभार !
हटाएंरूहानी अन्दाज़।
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