मौन
प्रकाश कहा नहीं जाता
अंधकार की कहे कौन ?
असीम शब्दों में नहीं समाता
अच्छा है रहें मौन
मुखर जब मौन होगा
सुवास बन खुद बहेगा
चकित हुआ मन जहाँ
मधु रस में पगेगा
समर्पण
हो समर्पित उर उन्हीं चरणों पे ऐसे
धूलि जिनकी करे पावन
बन सके फिर मन यह दर्पण
झलक जाए जग यह सारा
पर छू न पाए एक कण भी
तैरता इक जल के ऊपर
हो अछूता कमल जैसे
हो समर्पित उर किन्हीं कदमों में ऐसे
मार्ग पाए चल पड़े फिर
भूलकर सारी व्यथाएँ
एक ही पथ चुन ले राही
कदम फिर उस पर बढ़ा दे
इक तने पर खड़ा है वट
अनगिनत शाखाएँ धारे
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति!!
जवाब देंहटाएंगहनतम लेखन...
जवाब देंहटाएंसार्थक सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंमौन और समर्पण दोनो ही बेहतरीन ।
जवाब देंहटाएंएक ही पथ चुन ले राही
जवाब देंहटाएंकदम फिर उस पर बढ़ा दे
सुंदर प्रस्तुति आदरणीय , बहुत बधाइयाँ ।
बहुत बढियां सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआप सभी सुधीजनों का हृदय से स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंसमर्पण के मार्ग में ही सुख है ...
जवाब देंहटाएंपरम आनंद है ... सुन्दर अभिव्यक्ति ...
स्वागत व आभार !
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