रविवार, नवंबर 28

कहानी एक दिन की

कहानी एक दिन की

दिनकर का हाथ बढ़ा

उजियारा दिवस चढ़ा,

अंतर में हुलस उठी

दिल पर ज्यों फूल कढ़ा !


अपराह्न की बेला

किरणों का शुभ मेला,

पढ़कर घर लौट रहे

बच्चों का है रेला !


सुरमई यह शाम है

तुम्हरे ही नाम है,

अधरों पर गीत सजा

दूजा क्या काम है !


बिखरी है चाँदनी

गूंजे है रागिनी,

पलकों में बीत रही

अद्भुत यह यामिनी !


17 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 29 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. और पूरी हो गयी दिन की कहानी ...... सुंदर रचना ।

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  3. प्रकृति को परिभाषित करता सुंदर, सरस गीत ।

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  4. दिन के उदय से अस्त के चारों पहर आपने थोड़े शब्दों में गहनता और सुंदरता से रच दिए , सुंदर सृजन।

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  5. बेहतरीन रचना, लाजबाव पंक्तियां

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  6. मनीषा जी, अनीता जी व भारती जी आप सभी का स्वागत व हृदय से आभार!

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  7. सुबह से रात तक का मौसमका बदलाव ... सुन्दर पंक्तियों में उतारा है ...
    भावपूर्ण ....

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