कहानी एक दिन की
दिनकर का हाथ बढ़ा
उजियारा दिवस चढ़ा,
अंतर में हुलस उठी
दिल पर ज्यों फूल कढ़ा !
अपराह्न की बेला
किरणों का शुभ मेला,
पढ़कर घर लौट रहे
बच्चों का है रेला !
सुरमई यह शाम है
तुम्हरे ही नाम है,
अधरों पर गीत सजा
दूजा क्या काम है !
बिखरी है चाँदनी
गूंजे है रागिनी,
पलकों में बीत रही
अद्भुत यह यामिनी !
अद्भुत
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 29 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
और पूरी हो गयी दिन की कहानी ...... सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंजी, आभार!
हटाएंप्रकृति को परिभाषित करता सुंदर, सरस गीत ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार!
जवाब देंहटाएंदिन के उदय से अस्त के चारों पहर आपने थोड़े शब्दों में गहनता और सुंदरता से रच दिए , सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार कुसुम जी !
हटाएंअति सुन्दर !
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत ही सुंदर😍💓
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर
बेहतरीन रचना, लाजबाव पंक्तियां
जवाब देंहटाएंमनीषा जी, अनीता जी व भारती जी आप सभी का स्वागत व हृदय से आभार!
जवाब देंहटाएंअद्भुत भाव।
जवाब देंहटाएंसुबह से रात तक का मौसमका बदलाव ... सुन्दर पंक्तियों में उतारा है ...
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण ....